ज़रा सोचिए किसी के हुनर की कभी आपने दी है दाद,
या फ़िर आपने समझा है इस से वक़्त होता है बरबाद।
अपनी मेहनत की तारीफ़ पैसे मिलने से भी ज़्यादा है,
ऐसे लगता है किसी ने सुन ली हो हमारी फरियाद।
कई बार हमारी खुदी दूसरों के लिए यह करने नहीं देती,
हम हैं तो हम समझते हैं सारी दुनिया है आबाद।
कदर करना दूसरों की और उनके शुक्रगुजार बनना,
खुश रखता है उनको, नहीं तो हो जाते हैं नशाद।
दूसरों की हर वक़्त हम बुराइयां ढूंढते हैं,
उनके जाने के बाद फ़िर आती है उनकी याद।
क्यों ना किसी की कदर दानी उनके जीते जी हम करें,
उनको और अपने आप को करें बद दुआ से आज़ाद।