SINGING MY OWN POEMS – PART I

I have been writing poems from the age of sixteen. Poems are a way, for me, to express inner feelings. Exactly one year ago, after many years, I started composing my poems.

Here I am giving you the first six of them.

#1 – TU

I wrote this poem at the age of sixteen:

एक मुद्दत से तमन्ना थी जिसे कहने की,
बात वो अब भी मैं कह नहीं पायूँगा सनम,
ज़िंदा हैं अश्क़ अब भी जो बहाये मैंने,
मैं उन अश्कों मैं कभी बह नहीं पायूँगा सनम I

याद आएँगी मुझे खामोश ओ मजबूर रातें,
अपने ही आप से मैं करता रहा था बातें
सोचा था अब तेरे दीदार को ना तरसूँगा कभी
जो न मुझे मिल सका उस प्यार को ना तरसूँगा कभी
सोच कर फिर वही मायूस सा हो कर सोचा
बिन तुम्हारे मैं रह भी ना पायूँगा सनम
वो बात अब भी मैं कह नहीं पायूँगा सनम I

मेरे बारे में कभी तुमने भी ये सोचा होगा
ये भी एक और दीवाना है दीवानो की तरह
मैं जो रौशन हूँ सियाह रात में शमा की तरह
मेरा परवाना है यह भी परवानो की तरह
सोच कर तूने इतना तो सोचा होता:
इतने सितम मैं सह भी ना पायूँगा सनम
वो बात अब भी मैं कह नहीं पायूँगा सनम I

खुद को मुझसे इतना भी ना तू दूर समझ
अपने परवाने को इतना भी ना मजबूर समझ
मैं अगर चाहूँ तो इतनी भी है ताक़त मुझ में:
याद को तेरी मैं इक तू ही बना सकता हूँ
इक तो तू है जो मेरी हर बात को समझे वहशत
अपनी तू को मैं हर इक बात सुना सकता हूँ
तुझको सजाना चाहूँ तो ज़ुल्फ़ भी छूने नहीं दे
अपने अरमानो से तेरा हर अंग सजा सकता हूँ
गम नहीं अब जो तू लाख भी रूठे मुझसे
अपनी तू को मैं जब चाहे मना सकता हूँ I

Please enjoy: Tu – A Nazm…

#2 – A POEM ON OUR WEDDING ANNIVERSARY

My wife, Marilyn (nickname Lyn) is the object of many of my songs and poems. On the eve of our wedding anniversary, on 24 March (we were married on 24 Mar 1981), I wrote a poem for us:

दिलों की जब जुड़ गई तार,
दिलों की जब जुड़ गई तार,
इक दूजे के बगैर
फिर जीना हुआ दुश्वार l

जिस दिन से हुआ इकरार
जिस दिन से हुआ इकरार
दोनों ने मिल के बनाया
एक प्यारा घर संसार l

आज बहुत हैं खुशगवार
आज बहुत हैं खुशगवार
अपनी सालगिरह,
आयी है फिर एक बार l

जिंदगी पे नहीं इख्तियार
जिंदगी पे नहीं इख्तियार
पर रब्बा तू करना
हम दोनों का अमर प्यार l

I composed this in the form of Punjabi Tappe’.

Please enjoy: Dilon ke jab judh gaye yaar…

#3 – KYA KYA JANAB MUJHSE HI MAANGTE HO?

इतने सारे सवालों का जवाब मुझसे ही मांगते हो,
लगता है सारी ज़िन्दगी का हिसाब मुझसे ही मांगते हो।

खुद तो एक भी चीज़ इधर से उधर नहीं होने देते,
पर मेरी ज़िन्दगी में इंकलाब मुझसे ही मांगते हो।

मुझको समझते हो कमबख्त, जलील और ज़ालिम,
पर अपने नाज़नीन होने का खिताब मुझसे ही मांगते हो।

लिखें हैं मेरी बुराइयों के किस्से हर रोज़ हर लम्हा,
पर हमारे इश्क़ की किताब मुझसे ही मांगते हो।

ज़िन्दगी में अंधेरों की कमी आपने महसूस न होने दी,
यह और बात है कि आफताब मुझसे ही मांगते हो।

आपकी कोशिश रही है मर जाएं तबाह हो जाएं हम,
पर हम कब होंगे कामयाब मुझसे ही मांगते हो।

अब हम कब्र में पांव लटकाए बैठे हैं इंतज़ार में,
ऐसी नाज़ुक उम्र में शबाब मुझसे ही मांगते हो।

Please enjoy: Kya kya janab mujhse hi maangte ho?

#4 – HUM EK, HAMARI EK

This is a song that I wrote on our wedding anniversary in 2016:

हम एक, हमारी एक……….. ज़िन्दगी,
कभी एक दूजे की, कभी खुदा की बंदगी I

पैंतीस साल पहले जो मांगी थी दुआ,
उसी का तो अब तक है सिलसिला,
नज़रों का एक होना तो सुनते आये थे,
पर यहाँ तो दिल, ख्वाब, सब एक हुआ I
हम एक, हमारी एक ………….पहचान,
एक दूसरे में बस्ती है अपनी जान I

गरीब थे हम, पर बने रहे अमीर,
हम ही तो थे कल के राँझा और हीर,
दोस्तों ने जिन्हे हमें धनि बनाया,
कहा: “यही तो हैं प्यार की तस्वीर” I
हम एक, हमारी एक ……….. कोशिश,
क्या खूब बनी प्यार की बन्दिश I

ज़िन्दगी में आये कई चढ़ाव उतार,
हम एक संग पहुंचे उनके पार,
ऐसे ही बनी रहे हमारी छोटी सी ज़िन्दगी,
ऐसे ही बना रहे हमारा छोटा सा परिवार I
हम एक, हमारी एक ………. दास्तान,
तू मेरा जहान, मैं तेरा जहान I

कई बरस बाद, हम हवा में समा जाएंगे,
किसी को फिर नज़र नहीं आएंगे,
पर फिर भी देखना लोग भूलेंगे नहीं,
जब प्यार का ज़िक्र हो, हम याद आएंगे I
हम एक, हमारी एक ……… फ़रियाद,
प्यार हमारा बना रहे, मरने के भी बाद I

Please enjoy: Hum ek, hamari ek…

#5 – NOTES FOR VOTES – A PARODY

This is a parody I wrote on the current political situation. The parody is on the popular Sangam song: Bol Radha bol sangam hoga ke nahin:

मेरे जेब का नोट और तेरे हाथ के वोट का,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं – 2
“नहीं, कभी नहीं”

कितने चुनाव लड़ चुका हूँ इस गद्दी को पाने में,
हर बार डिपाजिट लूज़ किया है इस सपने सुहाने में,
बैंक का बढ़ता लोन कभी कम होगा के नहीं,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं….
“जा, जा”

दो नदियों का मेल अगर इतना पावन कहलाता है,
क्यों न जहां राजनीतिक दल मिलते हैं, स्वर्ग वहां बस जाता है,
नोट से काम न चला तो व्हिस्की रम होगा के नहीं,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं..
“ऊंह”

एक बार मुझको मौका दो पावर में आ जाने का,
फिर देखो मैं टूर करूँगा सारे ही ज़माने का,
इस से आपकी प्रॉब्लम का हल होगा के नहीं,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं…
“जाओ न, क्यों सताते हो, होगा, होगा, होगा”

Please enjoy: Notes for votes – a parody…

#6 – JAB HUI HAI MAUT SE GUFTUGU

This is a serious one:

जब हुई है मौत से गुफ़्तगू,
ज़िन्दगी का ख्याल आ गया।
और जियें या ना जिएं,
फ़िर वही सवाल आ गया।

ज़िन्दगी गुज़र रही थी,
तहरीक ए हयात से मज़ूल।
फकत यही सोच के,
यूं ही उबाल आ गया।

आपको शायद लगता है,
मैं अभी भी जिंदा हूं।
जैसे ही खून ए दिल से,
रुख पे मलाल आ गया।

छोड़िए, रहने दीजिए,
जाने भी दीजिए इसे अब।
आख़िर में वक़्त यूं ही,
थोड़ी तेज़ चाल आ गया।

Please enjoy: Jab hui hai maut se guftugu…

In this blog of just six poems, I have given you from serious to funny, romantic to rueful.

I hope you enjoyed these figments of my imagination, composed and sung by me.

Please await Part II.

 

 

 

 

Author: Sunbyanyname

I have done a long stint in the Indian Navy that lasted for nearly thirty seven years; I rose as far as my somewhat rebellious and irreverent nature allowed me to. On retirement, in Feb 2010, the first thing that occurred to me, and those around me, was that I Flew Over the Cuckoo's Nest (you will find an article with this title in this blog) and hadn't lost all my noodles and hence thought of a blog titled 'This 'n That'. I later realised that every third blog is called 'This 'n That' and changed the name to 'Sunbyanyname'. I detest treading the beaten track. This blog offers me to air 'another way' of looking at things. The idea is not just to entertain but also to bring about a change. Should you feel differently, you are free to leave your comments. You can leave comments even when you agree and want to share your own experience about the topic of the blog post. Impudent or otherwise, I have never been insousciant and I am always concerned about the betterment of community, nation and the world. I hope the visitors of this blog would be able to discern it.

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