ऐसा लगता है हमें कि कुछ हैं हम,
यह कुछ नहीं बस सिर्फ है वहम।
रेत पे चलते हुए कुछ देर नज़र आते हैं:
तुम्हारे भी कदम, हमारे भी कदम।
किसी से पूछना उनके पड़दादे का क्या नाम है,
हमारी ज़िन्दगी यहां छोटा सा मुकाम है,
गर सौ बरस तक तुम्हें कोई याद रखे,
झुक झुक के तुम्हें मेरा सलाम है।
नहीं यकीन तो चलो मिल कर करते हैं एक तजरुबा,
बरस १९२० में कौन थे किसके अब्बा?
कुनबे में और कौन थे, क्या थीं उनकी बातें?
कौन खयाली थे और कौन थे अजूबा?
किसकी नेकियां या बुराइयां आपको हैं याद?
आपने उनके लिए क्या किया उनके जाने के बाद,
कभी तो उनका ज़िक्र ए ज़िन्दगी हुआ होगा?
कभी तो आपने की होगी उनकी रूह के लिए फरियाद।
अगर आपके जवाब ज़्यादा तर हैं “न या नहीं”,
फ़िर अपनी “हम हैं” के लिए क्या ढूंढते हो कहीं?
हमारी ज़िन्दगी है सिर्फ पानी में बुदबुदा,
हम चले जाएंगे ज़माना रह जाएगा यहीं।
इसलिए निकल आयिए अपनी अहमियत के खुमार से,
राज़ी नामा कर लीजिए अपने ही ख़ाकसार से।
फ़िर आज़ाद रहिए गमों से और महरूमी से,
मिटा दीजिए रंग ए गरूर अपने रुखसार से।
मैं कुछ भी नहीं हूं रब्बा, मुझे रख अपने पाओं के पास,
अपनी अहमियत की मेरी मिटा दे तू प्यास।
मैं तेरे बारे अपने से ज़्यादा सोचूं,
तूं ही हो मेरी उम्मीद, तू ही हो मेरी आस।
शुभ प्रभात।