पांचवी जमात में वह हुआ था फेल,
और क्रिकेट में भी वह न था माहिर।
नेताओं के साथ भी उसका न था मेल,
चारों ओर उसकी नाकामी थी ज़ाहिर।
वालदेन उसके बारे में थे परेशान,
क्या करेगा हमारा निकम्मा बच्चा?
रब्ब ने कैसी घटिया दी हमें सन्तान,
न ही होता पैदा तो होता अच्छा।
दारू पी पी के उनका हनुमान हुआ था तंग,
करने जा रहा था खुद कुशी।
फ़िर उसको स्वामी बनने का आ गया ढंग,
और मायूसी उसकी बन गई खुशी।
भगवे कपड़े पहन के वह एक दिन,
बैठ गया गाओं के पीपल के नीचे।
माला के मनके वह करने लगा गिन,
और लोग लग गए उसके पीछे।
हिन्दुस्तानी रहते हैं हर तरफ से सताए,
आख़री आस उनकी रहती है भगवान।
वह तो आता नहीं कभी उनके बुलाए,
पर ऐसे साधू जल्द ही बन जाते हैं महान।
सिर्फ उनको यह कहना है लोगों से।
जो वह सुनने की लिए हैं आए।
इस राख से छुटकारा मिलेगा सब रोगों से,
अपने माथे पे इसे रखिए लगाए।
चढ़ावा फ़िर आना हो जाएगा शुरू,
दूध मिलेगा और लड्डू देसी घी के।
उनके सामने बने रहो गुरु,
और रात को सोयो दारू पी के।
बस ऐसी ऐसी करो कुछ बातें,
जिनका कोई भी न हो मतलब।
आनंद में बीतेंगे दिन और रातें।
लोग धीरे धीरे तुम्हें समझेंगे रब्ब।
हनुमान सिंग को दूर दूर से लोग,
उनके दर्शन के लिए आते हैं,
नेता, क्रिकेटर और वालदेन भी अपना रोग,
स्वामी जी से ही दूर कराते हैं।
जो उनको कहते थे निकम्मा,
अब मानते हैं सब से सियाना।
सबसे खुश हैं उनके अब्बा और अम्मा,
स्वामी जी से हमें भी मिलाना।
एक दो कभी जेल चले जाते हैं,
बाकियों की पांचों उंगलियां हैं घी में।
ठीक है लोग उनसे कुछ नहीं पाते हैं,
पर उनकी ज़िन्दगी गुज़र जाती है फ़्री में।