स्मार्ट फोन लेने मैं गया मोबाइल दुकान से,
क्या चाहिए यह नहीं निकल रहा था ज़ुबान से।
फ़िर कहा, “ऐसा दिखाइए जो मुझसे स्मार्टनेस न दिखाए।”
अपना काम मुझे करने दे इत्मीनान से।
Applications ऐसी न हों जो मुझे कठपुतली बना दें।
हर वक़्त यह करो वह करो, हां करे, मना करे।
जो कुछ फ़ोन करे, कुछ तो मेरे कंट्रोल में हो।
आधे से ज़्यादा processes वह न मेरे बिना करे।
बार बार मुझे न बोले यह करो अब download,
आम तौर पे ऑपरेट करे यह in silent mode.
Update कर कर के मुझे और कुछ करने न दे।
बार बार मुझसे न मांगे पासवर्ड या पासकोड।
वीडियो और images download कर के out of memory न चला जाए।
मेरे कुछ गलत करने पे मुझे आंख न दिखाए।
कई चीजें मुझसे ही छिपा के या डिलीट कर देने से,
मेरा ही होके बार बार मुझे ही न डराए।
कई कई हफ्ते बैटरी चार्ज करने की न हो ज़रूरत,
गिर भी अगर जाए तो स्क्रीन न लगे बदसूरत।
Samsung या Apple के लोगो नहीं चाहिए हमें,
कितना अच्छा हो अगर पीछे भगवान श्री कृष्ण की हो मूरत?
सेल्समैन मुझे हड़बड़ा के कोने में ले आया,
दो डिब्बों को एक धागे से उसने बंधाया।
एक उसने मेरे कान में और दूसरा अपने मूंह में लगाया।
दूर से बोला: “सर, अब कुछ समझ में आया?”
मुझे उसकी हरकत बिल्कुल न अाई पसंद,
लेकिन वह मुस्कराता रहा मंद मंद।
स्मार्ट फोन से भी बढ़कर ऐसे स्मार्ट salesmen हों अगर,
Samsung और Apple वालों का बिजनेस हो जाएगा बन्द।