(On 23rd April 18, on my Facebook group ‘Main Shayar To Nahin’, I started a new series. Here is the third one of the series)
मेरे जेब का नोट और तेरे हाथ के वोट का,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं – 2
“नहीं, कभी नहीं”
कितने चुनाव लड़ चुका हूँ इस गद्दी को पाने में,
हर बार डिपाजिट लूज़ किया है इस सपने सुहाने में,
बैंक का बढ़ता लोन कभी कम होगा के नहीं,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं….
“जा, जा”
दो नदियों का मेल अगर इतना पावन कहलाता है,
क्यों न जहां राजनीतिक दल मिलते हैं, स्वर्ग वहां बस जाता है,
नोट से काम न चला तो व्हिस्की रम होगा के नहीं,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं..
“ऊंह”
एक बार मुझको मौका दो पावर में आ जाने का,
फिर देखो मैं टूर करूँगा सारे ही ज़माने का,
इस से आपकी प्रॉब्लम का हल होगा के नहीं,
बोल वोटर बोल संगम होगा के नहीं…
“जाओ न, क्यों सताते हो, होगा, होगा, होगा”