Hasya Panktiyan of the Day #35
बेचारे फौजी अभी भी सोचते हैं कोई उनकी सुनेगा,
कोई तो हो जिसे उनके लिए हो इज़्ज़त और प्यार;
कोई तो होगा जो उनका भी दम भरेगा,
यहां तो, दोस्तों, एक अनार और सौ बीमार I
“मानते हैं देश की रक्षा की जान पे खेल के,
अब इस के लिए क्या दें हम लोग इन्हें इनाम?
मानते हैं फ़र्ज़ निभाया हर वक़्त दुःख झेल के,
सारी खुशियां और आराम हो गए हराम I”
“पर हम क्या करें हम नेताओं की है मजबूरी,
बहुत सारे लोग हैं इज़ाफ़ों के हक़दार;
सबसे पहले industrialists को देना है ज़रूरी,
Elections में भारी चंदा देके हम पे किया उद्धार I”
“फिर बढे छोटे contractors की आती है बारी,
जो हर प्रोजेक्ट में हमें देते रहे हैं हिस्सा हमारा;
उन्हीं के कन्धों पे तो चलती है पार्टी हमारी,
Elections में तो उनका बहुत ही है सहारा I”
“पुलिस और बाबुओं को तो देना ही पड़ता है,
हर बार तो elections जीती नहीं जाए;
उनको देने से हमारा यह हौंसला बड़ता है,
ना रहे हम पावर में फिर भी हमें न कोई सताये I”
“फिर बची है देश की आम जनता,
डाक्टर, इंजीनियर, दुकानदार और किसान;
इनको तो आपको पता है देना ही है बनता,
ताके elections के बाद वापिस लेने का हो सामान I”
“अब आप ही बताओ फौजी को क्या दे सकते हैं?
इनके लिए हमारा हरदम है झुक के सलाम;
हम हर स्पीच में इनकी इज़्ज़त में कुछ कहते हैं,
हज़ारों लिखे हैं इनके लिए हमने कलाम I”
“हमने इनको agitation पे मजबूर कर दिया,
पुलिस से भी करवाया इन पे attack;
आम जनता के दिलों से हमने इन्हें दूर कर दिया,
Naval Chief को भी हमीं ने किया था sack”.
बेचारे फौजी अभी भी लगाए बैठे हैं आस,
देश में कोई तो होगा उनका आभारी;
अभी भी उनको हुआ नहीं है विश्वास,
बाहरी battles उन्होंने जीती पर अंदरूनी हैं हारी I