RRR Songs (Songs of Regret, Repentance and Ruefulness)
I started this new series on 17 Jan 21 on my Facebook Group Yaad Kiya Dil Ne. My efforts failed to involve people in writing their own stuff about songs and music rather than copying and pasting from here and there or worse, just sharing url of songs from YouTube. Hence, I had decided to give the group a burial that it deserved rather than making it like thousands of groups on Facebook about songs with nothing unique about them at all.
I hope you liked RRR Song #3: Hamsafar saath apna chhod chale. Here is the next song:
Song #4
Kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta
A Reality of Life
All virtues on earth are relative. A few years ago I wrote a piece called Absolute Virtue . Some of you who are interested can go through it.
The fact is that there is only one Absolute and He is God; all the others have all virtues in relative terms.
There is merit in this too since all our difficulties are relative too and transient at that just as all good things that happen to us.
However, in this song, Nida Fazli and the gentlest of composers Khayyam, have made it look like that it is sad and soulful.
Look at the lyrics of this song of Regret and Ruefulness:
कभी किसिको मुकम्मल जहा नही मिलता
कही जमी तो कही आस्मा नही मिलता
जिसे भी देखिए वो अपने आप मे गुम है
जूबा मिली है मगर हुंजुबा नही मिलता
बुज़ा सका है भला कौन वक्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस मे धुआ नही मिलता
तेरे जहाँ मे ऐसा नही के प्यार ना हो
जहा उम्मीद हो इसकी वाहा नही मिलता
Reality of YKDN Too
It is as relative and transient as anything else in this world. The way the world has been made, जिसे भी देखिए वो अपने आप मे गुम है. As Sahir said: कौन रोता है किसी और की ख़ातिर ऐ दोस्त, सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया.
My Own Poetry
I am giving you another perspective (I delve in Philosophy a great deal):
JAHAN TO MUKAMMAL HI HAI
दुनिया में जब खामियां नज़र आती हैं,
सोचते हैं रब्ब ने मुकम्मल जहान क्यूं नहीं बनाया?
खुद तो खुदा तकमील की मूरत हैं,
फिर चीज़ों और लोगों में खोट क्यूं भरवाया?
और तो और सब कुछ उनकी तखलीक में फानी है,
सबको दाइम भी तो बना सकते थे।
सब कुछ चंद रोज़ के लिए जैसे बहता पानी है,
मुस्तकिल बनाने से खुदा क्यूं डरते थे?
सबसे पहले तो एक बात की सबको पहचान है,
खुदा की कायनात तो करोड़ों सालों से यहीं है।
सिर्फ इसलिए के हम सब चंद रोज़ के मेहमान हैं,
क्यूं हम कहते हैं खुदा की खुदाई मुस्तकिल नहीं है?
जो कुछ दिखता है हमें फ़ानी खुदा की खुदाई में,
वो सिर्फ एक सूरत से दूसरी बदलता है,
जैसे सूरज या चांद दिखता है अंगड़ाई में,
यूं कि कभी ढलता है और कभी निकलता है।
जब हमें हर शय के दाइम होने का हो एहसास,
फ़िर हमें पहचान होती है खुदा की खुदाई की।
सब सराब है जो है हमारी इद्राक के पास,
मन की आंखें खोल के समझ आती है सच्चाई की।
It’d take a little time to sink in!
The Song
Yes, it was sung by Bhupinder Singh in the 1981 movie Ahista Ahista. However, I am giving you the Asha Bhosle version.
Please enjoy: Kabhi kisi ko mukammal jahan nahin milta…
I hope you liked Song #4 in this series.
Please await Song #5: Chandni raaten pyar ki baaten kho gayin jaane kahan.